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टिहरी एवं उत्तरकाशी के 180 गांव में इस खास दीपावली की तैयारी, ये है मान्यता…

उत्तराखंड

टिहरी एवं उत्तरकाशी के 180 गांव में इस खास दीपावली की तैयारी, ये है मान्यता…


Tehri News: पूरे देश में जहां 12- 13 नवंबर (कार्तिक) माह में दीपावली मनाई जा चुकी है वहीं देवभूमि उत्तराखंड मे एक ऐसा क्षेत्र भी है जहां दीपावली ठीक एक माह बाद 11-12 दिसंबर (मगशीर) माह को मनाई जाएगी। उत्तराखंड राज्य के टिहरी एवं उत्तरकाशी जिले के 180 गांव के लोग इस दीपावली की तैयारी में इन दोनों खासे मशगूल हैं। इस पर्वतीय पर्व आस्था के प्रतीक आराध्या देव गुरु कैलाबीर देवता का बलराज मेला 13-14-15 दिसंबर को मनाया जाएगा। दीपावली पर देश के विभिन्न शहरों में रह रहे यहां के निवासियों के साथ ही सात समुद्र पार रोजगार कर रहे प्रवासी उत्तराखंडीयो का पहुंचना शुरू हो गया है। स्थानीय बुजुर्गों के मुताबिक इस दीपावली की परंपरा लगभग 500 वर्ष पुरानी है।

मुख्य कारण यह है कि 16वीं शताब्दी में गढ़वाल नरेश महिपाल शाह के समय उत्तराखंड पर गोरखा राजाओं ने आक्रमण किया था , उस समय गढ़वाल के कई बीर भड, के साथ ही क्षेत्र के प्रमुख आराध्य देव गुरु कैलापीर देवता ने इस युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई राजमानी (राजा के माने हुए) गुरु कैलापीर देवता के युद्ध में सक्रिय होते ही टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार एवं उत्तरकाशी जिले के 90 जोला (यानी)180 गांव के प्रत्येक परिवार के मुखिया युद्ध में कूद पड़े। परिणाम स्वरूप गोरखा राजाओं को मुंह की खानी पड़ी और गढ़वाल नरेश महिपाल शाह की भारी जीत हुई।

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इस जीत पर खुश होकर गढ़वाल नरेश ने गुरु कैलापीर देवता को टिहरी जिले के कुश कल्याण के साथ ही थाती कठूड, एवं उत्तरकाशी जिले के गजडा कठूड, नेलंंड कठूड, क्षेत्र के 180 से अधिक गांव भेंट स्वरूप जागीर में दिए युद्ध के समय क्योंकि दीपावली थी और टिहरी, उत्तरकाशी जिले के इन गांवों के लोग युद्ध में शामिल थे।  इसलिए उस समय क्षेत्र में कार्तिक माह की दीपावली नहीं मनाई जा सकी दीपावली के ठीक एक महा बाद गुरु कैलापीर देवता के नेतृत्व में लोग युद्ध जीत कर खुशी-खुशी अपने घर पहुंचे।  युद्ध जीतने की खुशी में टिहरी गढ़वाल के बूढ़ाकेदार क्षेत्र एवं जौनपुर, थौलधार, प्रताप नगर के मदन नेगी, उत्तरकाशी जिले के रवाई, गजडा कठूड, नेलंंड कठूड, श्रीनगर के मलेथा और कुमाऊं के के कुछ गांव में यह भव्य दीपावली मनाई जाती है।

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यह परंपरा पिछले 500 वर्षों से चली आ रही है जो आज भी बद्दस्तूर जारी है। आज भी इन क्षेत्रो के लोग कार्तिक माह दीपावली को अपने रिश्तेदारों के घर जाकर मानते हैं। वहीं एक महा बाद मगशीर दीपावली को अपने रिश्तेदारों को निमंत्रण देकर अपने यहां बुलाकर इस दीपावली को बड़े हर्षो और उल्लास के साथ मनाते हैं। आराध्या देव देव गुरु कैलापीर देवता की इस दीपावली का साल भर से लोग बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं इस समय देश के विभिन्न महानगरों दिल्ली मुंबई चंडीगढ़ मे नौकरी व अपना व्यवसाय से छुट्टी लेकर लोग अपने घर आते हैं। साथ ही अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को दीपावली के लिए बुलाते हैं और इस पांच दिवसीय पर्वतीय दीपावली महोत्सव का लुफ्त उठाते हैं। इस माह 13 दिसंबर को इष्ट देव गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर आकर अपनी भक्तों को दर्शन देकर पुडारा के शेरे में दौड़ लगाकर गुरखों के साथ हुए युद्ध की यादों को तरोताजा कर आशीर्वाद देंगे।

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