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गर्मी अब सिर्फ़ मौसम नहीं, बीमारी बन गई है: लैंसेट रिपोर्ट की चेतावनी

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गर्मी अब सिर्फ़ मौसम नहीं, बीमारी बन गई है: लैंसेट रिपोर्ट की चेतावनी


देहरादून: जलवायु संकट अब भविष्य का खतरा नहीं रहा, वो आज की हकीकत बन चुका है, जिसका असर हमारे शरीर, सांस, और जेब, तीनों पर एक साथ पड़ रहा है।

Lancet Countdown on Health and Climate Change की 2025 रिपोर्ट बताती है कि हर साल बढ़ती गर्मी, प्रदूषण और जलवायु अस्थिरता अब सीधे तौर पर लोगों की सेहत और अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचा रही है।

2024 था अब तक का सबसे गर्म साल — और सबसे महँगा भी

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2024 वैश्विक तापमान का नया रिकॉर्ड लेकर आया। इस साल औसत तापमान 1.4°C तक पहुँच गया, जिसने न सिर्फ़ फसलें झुलसाईं, बल्कि काम करने की क्षमता भी घटा दी।

भारत सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में हीटवेव के कारण औसत श्रम-घंटे घटे, जिससे कृषि और निर्माण क्षेत्र पर भारी आर्थिक असर पड़ा।

Lancet Countdown के अनुसार, 2024 में गर्मी से जुड़े स्वास्थ्य संकटों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई, जिसमें heat-related mortality और hospital admissions में वृद्धि शामिल है।

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भारत पर असर: हर उम्र के लोगों के लिए खतरा बढ़ा

रिपोर्ट का भारत-केंद्रित विश्लेषण बताता है कि देश में अब हीटवेव की अवधि और तीव्रता दोनों बढ़ रही हैं।
इससे बुजुर्गों, बच्चों और मज़दूर वर्ग के लिए जोखिम कई गुना बढ़ गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2010 की तुलना में 2024 में गर्मी से संबंधित मौतें दोगुनी हुईं, और 65 वर्ष से ऊपर की आबादी में यह खतरा सबसे ज़्यादा देखा गया। इसी के साथ, प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों, जैसे कि क्रॉनिक रेस्पिरेटरी डिजीज़ और हार्ट प्रॉब्लम्स , में भी लगातार बढ़ोतरी दर्ज की गई।

खाद्य सुरक्षा और खेती पर दोहरी मार

रिपोर्ट ने आगाह किया है कि जलवायु परिवर्तन अब भोजन की उपलब्धता और पौष्टिकता दोनों पर असर डाल रहा है। 2024 में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अनाज उत्पादन घटा, खासकर चावल और गेहूं जैसी मुख्य फसलों में।

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रिपोर्ट के मुताबिक, गर्मी और अनियमित वर्षा के कारण भारत में कृषि उत्पादकता में 7% की गिरावट दर्ज की गई, और इससे भोजन की कीमतें और कुपोषण का खतरा बढ़ गया।

आर्थिक बोझ बढ़ा, स्वास्थ्य व्यवस्था पर दबाव

रिपोर्ट बताती है कि 2024 में जलवायु-जनित आपदाओं से दुनियाभर में 350 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जिसमें एशिया का हिस्सा सबसे बड़ा था।

भारत में हीट-संबंधी बीमारियों के इलाज और काम की हानि से देश की अर्थव्यवस्था पर करोड़ों डॉलर का बोझ बढ़ा है। Lancet Countdown की Executive Director डॉ. रेचल आर्सेनॉल्ट कहती हैं, “हर डिग्री तापमान बढ़ना सिर्फ़ मौसम की बात नहीं, यह स्वास्थ्य, आय और समानता — तीनों पर सीधा हमला है।”

नीति और कार्रवाई की दिशा में संकेत

रिपोर्ट में कहा गया है किअगर देशों ने पेरिस समझौते के लक्ष्य के मुताबिक 1.5°C के भीतर तापमान रोकने की कोशिशें तेज़ कीं, तो लाखों ज़िंदगियाँ और अरबों डॉलर का नुकसान रोका जा सकता है।

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भारत के संदर्भ में, रिपोर्ट ने National Clean Air Programme (NCAP), Renewable Energy Targets,
और Heat Action Plans जैसे प्रयासों का ज़िक्र किया है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि इन योजनाओं को ज़मीन पर लागू करने की रफ्तार धीमी है।

कहानी का सार: अब जलवायु नीति नहीं, स्वास्थ्य नीति भी है

Lancet Countdown 2025 का संदेश साफ़ है, जलवायु कार्रवाई अब सिर्फ़ पर्यावरण की नहीं, जन-स्वास्थ्य की नीति बन चुकी है।

भारत के लिए इसका अर्थ है:
ऊर्जा, स्वास्थ्य और खाद्य नीतियों को एक ही साझा दृष्टिकोण से देखना होगा।

क्योंकि अब सवाल सिर्फ़ ये नहीं कि मौसम कितना बदलेगा, बल्कि ये है कि हम उस बदलते मौसम में कितने स्वस्थ रह पाएँगे।

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